Mata Shabari ko Prabhu Shri Ram ke Nawadha Bhakti Updesh - Ramcharitmanas

माता शबरी को नवधा भक्ति उपदेश




ताहि देइ गति राम उदारा। 
सबरी कें आश्रम पगु धारा॥ 
सबरी देखि राम गृहँ आए। 
मुनि के बचन समुझि जियँ भाए॥3॥ 



सरसिज लोचन बाहु बिसाला। 
जटा मुकुट सिर उर बनमाला॥ 
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। 
सबरी परी चरन लपटाई॥4॥ 


प्रेम मगन मुख बचन न आवा। 
पुनि पुनि पद सरोज सिर नावा॥ 
सादर जल लै चरन पखारे। 
पुनि सुंदर आसन बैठारे॥5॥ 


कंद मूल फल सुरस अति 
दिए राम कहुँ आनि। 
प्रेम सहित प्रभु 
खाए बारंबार बखानि॥34॥ 


पानि जोरि आगें भइ ठाढ़ी। 
प्रभुहि बिलोकि प्रीति अति बाढ़ी॥ 
केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी। 
अधम जाति मैं जड़मति भारी॥1॥ 



अधम ते अधम अधम अति नारी। 
तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी॥ 
कह रघुपति सुनु भामिनि बाता। 
मानउँ एक भगति कर नाता॥2॥ 


जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई। 
धन बल परिजन गुन चतुराई॥ 
भगति हीन नर सोहइ कैसा। 
बिनु जल बारिद देखिअ जैसा॥3॥ 


नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। 
सावधान सुनु धरु मन माहीं॥ 
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। 
दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥4॥ 



गुर पद पंकज सेवा 
तीसरि भगति अमान। 
चौथि भगति मम गुन गन 
करइ कपट तजि गान॥35॥ 



मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। 
पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥ 
छठ दम सील बिरति बहु करमा। 
निरत निरंतर सज्जन धरमा॥1॥ 


सातवँ सम मोहि मय जग देखा। 
मोतें संत अधिक करि लेखा॥ 
आठवँ जथालाभ संतोषा। 
सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा॥2॥ 


नवम सरल सब सन छलहीना। 
मम भरोस हियँ हरष न दीना॥ 
नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई। 
नारि पुरुष सचराचर कोई॥3॥ 



सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरें। 
सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें॥ 
जोगि बृंद दुरलभ गति जोई। 
तो कहुँ आजु सुलभ भइ सोई॥4॥ 


मम दरसन फल परम अनूपा। 
जीव पाव निज सहज सरूपा॥ 
जनकसुता कइ सुधि भामिनी। 
जानहि कहु करिबरगामिनी॥5॥ 


पंपा सरहि जाहु रघुराई। 
तहँ होइहि सुग्रीव मिताई॥ 
सो सब कहिहि देव रघुबीरा। 
जानतहूँ पूछहु मतिधीरा॥6॥ 


बार बार प्रभु पद सिरु नाई। 
प्रेम सहित सब कथा सुनाई॥7॥ 


कहि कथा सकल बिलोकि 
हरि मुख हृदय पद पंकज धरे। 
तजि जोग पावक देह परि 
पद लीन भइ जहँ नहिं फिरे॥ 
नर बिबिध कर्म अधर्म बहु 
मत सोकप्रद सब त्यागहू। 
बिस्वास करि कह दास तुलसी 
राम पद अनुरागहू॥ 


जाति हीन अघ जन्म महि 
मुक्त कीन्हि असि नारि। 
महामंद मन सुख चहसि 
ऐसे प्रभुहि बिसारि॥36॥
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