Mai Raam Par Likhun Meri Himmat Nahi hai Kuchh- Shamsi Meenai

मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ 

शम्स मीनाई 

मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ 
तुलसी ने बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ 
फिर ऐसा कोई ख़ास कलम वर नहीं हूँ मैं 
लेकिन वतन की ख़ाक से बाहर नहीं हूँ मैं 

कोई पयाम ए हक़ हो वो सब है मेरे लिए 
दुनिया का हर बुलंद अदब है मेरे लिए 
वो राम जिसका नाम है जादू लिए हुए 
लीला है जिसकी ॐ की खुशबू लिए हुए 
अवतार बन के आयी थी ग़ैरत शबाब की 
भारत में सबसे पहली किरण इंक़लाब की 

मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ 
तुलसी ने बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ 

हर गाम जिसका सच का फरेरा ही बन गया 
वनवास ज़िन्दगी का सवेरा ही बन गया 
एक तर्ज एक एक बात है हर ख़ास ओ आम से 
मिलते हैं कैसे कैसे सबक हमको राम से 
ऊंचा उठे तो फ़र्क़ न लाये सऊर में 
कोई बढ़े न हद से ज्यादा गुरुर में 
जंगल में भी खिला तो रही फूल की महक 
गुदरी में रह के लाल की जाती नहीं चमक 
दिल से कभी ये प्यार निकाला न जायेगा 
माँ बाप का ख्याल भी टाला न जायेगा 
बेटा वही जो माँ बाप की फरमान मान ले 
शौहर वही जो लाज पे मरने की ठान ले 
और बाप वो जो बेटों को लव - कुश बना सके 
उनको जगत में जीने के सब गुण सिखा सके 
भाई जो चाहे भाई को तलवार की तरह 
जरनल जो रखे फ़ौज को परिवार की तरह 
राजा वही गरीब से इन्साफ कर सके 
दलदल से जात पात से हरदम उबर सके 
जो वर्ण भेद भाव के चक्कर को तोड़ दे 
शबरी के बेर खा के ज़माने को मोड़ दे 
इंसान हक़ की राह में हरदम जमा रहे 
ये बात फिर फिजूल की लश्कर बड़ा रहे 
ईमान हो तो सोने का अम्बार कुछ नहीं 
हो आत्मबल तो लोहे के हथियार कुछ नहीं 

रावण की मैंने माना की हस्ती नहीं रही 
रावण का कारोबार है फैला हुआ अभी 
छाया हर एक सिम जो अँधेरा घना हुआ 
हिन्दुस्तान आज है लंका बना हुआ 
जो जुल्म से डरे वो उपासक  हो राम का
सोने पे जान दे वो उपासक हो राम का 
वो राम जिसने जुल्म की बुनियाद ढाई थी 
जिसके भगत ने सोने की लंका जलाई थी 
हर आदमी ये सोचे जो होशो हवास है 
वो राम के करीब है रावण के पास है 
लोगों को राम से जो मोहब्बत है आज कल 
पूजा नहीं अमल की जरुरत है आज कल 


मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ 
तुलसी ने बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ 
मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ 
तुलसी ने बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ 
मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ 
तुलसी ने बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ 
मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ 
तुलसी ने बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ 


बोलो सियावर रामचंद्र भगवान की -जय 









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